गुरुवार, 19 जनवरी 2012

JAGO HINDU JAGO: जनरल VK Singh ji बचा सकते हो तो बचा लो हमें व हमार...

JAGO HINDU JAGO: जनरल VK Singh ji बचा सकते हो तो बचा लो हमें व हमार...: 1985 में अलकायदा की स्थापना ने बाद बाकी सारी दुनिया की तरह भारत में भी मुस्लिम जिहादियों को नये सिरे से संगठित होने का मौका मिला । जिसका प...

सोमवार, 16 जनवरी 2012

भारतवासियों को स्वामी विवेकानन्द जी का संदेश -1…स्वामी विवेकानन्द जी की 150 वीं जयंती(12 जनवरी 2012) पर विशेष

मेरे प्रिय देशवासियो, पाश्चात्य लोगों के लिए मेरा सन्देश ओजस्वी रहा है; तुम्हारे लिए मेरा सन्देश उससे भी ओजस्वी है। मैंनें यथाशक्ति प्रयत्न किया है कि नवीन पश्चिमी राष्ट्रों के लिए पुरात्न भारत का सन्देश मखरित करूँ---भविष्य निश्चित रूप से पताएगा कि मैंनें यह कार्य सम्यक रूप से किया या नहीं ; पर उस अनागत भविष्य के सशक्त-सवल स्वरों का कोमल पर सपष्ट मर्मर अभी से सुनाई देने लगा है ---भावी भारत का सन्देश वर्तमान भारत के लिए; और जैसे-जैसे दिन वीतते हैं,यह मर्मर ध्वनिसबलतर-सपष्ट होती जाती है।
जिन विविध जातियों को देखने समझने का सौभाग्य मुझे मिला, उनके वीच मैंनें अनेक संस्थाओ, प्रथाओं, रीति-रिवाजों और शक्ति तथा बल की अदभुत अभिव्यक्तियों का अद्ययन किया है ; पर इन सबमें सर्वाधिक विस्मयकारी यह उपलब्धि थी कि रहन-सहन, प्रथाओं, संस्कृति और शक्ति  की इन  बाह्या   विभिन्ताओं ---इन उपरी विभेदों के अन्तराल में, एक ही प्रकार के शुख-दुख से, एक ही प्रकार की शक्ति और दुर्बलता से वही महौ-जस मानव ह्रदय स्पंदित है।
शुभ और असुभ सर्वत्र है, और दोनों के पलड़े अदभुत रूप से बराबर हैं। पर सर्वत्र सर्वोपरि है मनुष्य की महिमामयी आत्मा, जो कि उसकी ही भाषा में वोलने वाले किसी भी व्यक्ति को समझने से कभी नहीं चूकती। हर जगह ऐसे नर नारी हैं जिनका जीवन मानब जाति के लिए बरदान है और जो दिव्य सम्राट अशोक के इन शब्दों को सत्य सिद्द करते हैं : ‘प्रत्येक देश में ब्रह्मणों और श्रमणों का निवास है।’
केवल शुद्ध और निष्काम आत्मा द्वारा ही सम्भव प्रेम के साथ मेरा स्वागत-सत्कार करने वाले उन अनेक सह्रदय पुरूषों  के लिए मैं पाश्चात्य देशों का अभारी हूँ । पर मेरे जीवन की निष्ठा तो मेरी इस मातृ भूमि के लिए अर्पित है। और यदि मुझे हजार जीवन भी प्राप्त हों, तो प्रत्येक जीवन का प्रत्येक क्षण, मेरे देशवासियो, मेरे मित्रो, तुम्हारी ही सेवा में अर्पित रहेगा।
क्योंकि मेरा जो कुछ भी है ---शारीरिक, मानसिक और आत्मिक ---सबका सब इस देश की ही देन है; और यदि मुझे किसी अनुष्ठान में सफलता मिली है तो कीर्ति तुम्हारी(देशवासियों की) है मेरी नहीं। मेरी अपनी तो केवल दर्बलताएँ और असपलताएँ हैं; क्योंकि जन्म से ही जो महान सिक्षाएँ इस देश में व्यक्ति को अपने चतुर्दिक बिखरी और छायी मिलती हैं, उनके लाभ उठाने की मेरी असमर्थता से ही इन दुर्बलताओं और असफलताओं उत्तपति हुई है।
और कैसा है यह देश! जिस किसी के भी पैर इस पावन धरती पर पड़तें हैं वही, चाहे वह विदेशी हो, चाहे इसी धरती का पुत्र, यदि उसकी आत्मा जड़ पशुत्व की कोटि तक पतित न हो गई हो तो, अपने आपको पृथ्वी के उन सर्वोतकृष्ट और पावनतम पुत्रों के जीवन्त विचारों में घिरा हुआ अनुभव करता है, जो शताब्दियों से पशुत्व को देवत्व तक पहुंचाने के लिए श्रम करते रहे हैं और जिनके प्रादुर्भाव की खोज करने में इतिहास असमर्थ है। यहां की वायु भी अध्यात्मिक स्पंदनों से पूर्ण है।….







पूर्ण जानकारी के लिए अद्वैत  आश्रम (प्रकाशन विभाग) 5 डिही एम्टीला रोड कोलकता 700014  द्वारा प्रकाशित
विवेकानन्द सहित्य के नवम खण्ड के 297 पृष्ठ पर पढ़ें…